मंगलवार, 24 सितंबर 2013

तन तुम्हारा अगर राधिका बन सके

तन तुम्हारा अगर राधिका बन सके, मन मेरा फिर तो घनश्याम होजायेगा।
मेरे होठों की वंशी जो बन जाओ तुम, सारा संसार बृजधाम हो जायेगा।

तुम अगर स्वर बनो राग बन जाऊँ मैं
तुम रँगोली बनो फाग बन जाऊँ मैं
तुम दिवाली तो मैं भी जलूँ दीप सा
तुम तपस्या तो बैराग बन जाऊँ मैं
नींद बन कर अगर आ सको आँख में, मेरी पलकों को आराम हो जायेगा।

मैं मना लूँगा तुम रूठ्कर देख लो
जोड लूँगा तुम्हें टूट कर देख लो
हूँ तो नादान फिर भी मैं इतना नहीं
थाम लूँगा तुम्हें छूट कर देख लो
मेरी धडकन से धडकन मिला लो ज़रा, जो भी कुछ खास है आम हो जायेगा।

दिल के पिजरे में कुछ पाल कर देखते
खुद को शीशे में फिर ढाल कर देखते
शांति मिलती सुलगते बदन पर अगर
मेरी आँखों का जल डाल कर देखते
एक बदरी ही बन कर बरस दो ज़रा, वरना सावन भी बदनाम हो जायेगा।
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डा० विष्णु सक्सेना

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है

 तूफ़ानी लहरें हों
अम्बर के पहरे हों
पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है....!
राजवंश रूठे तो
... राजमुकुट टूटे तो
सीतापति-राघव से राजमहल छूटे तो
आशा मत हार, पार सागर के एक बार
पत्थर में प्राण फूँक, सेतु फिर बनाना है
पतझर का मतलब है फिर बसंत आना है.....!
घर भर चाहे छोड़े
सूरज भी मुँह मोड़े
विदुर रहे मौन, छिने राज्य, स्वर्ण.रथ, घोड़े
माँ का बस प्यार, सार गीता का साथ रहे
पंचतत्व सौ पर है भारी, बतलाना है
जीवन का राजसूय यज्ञ फिर कराना है
पतझर का मतलब है, फिर बसंत आना है......!

एक चेहरा था ,दो आखेँ थीं

एक चेहरा था ,दो आखेँ थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा तो नहीं रमा ,जग में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर ,पनघट इस घट में अटक गया ,
एक इंगित ने ऐसा मोड़ा,जीवन का रथ पथ भटक गया ,
जिस "पागलपन" को करने में ,ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
... वो पागलपन जी कर खुद को ,हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे...!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
परिचित-गुरुजन-परिजन रोये,दुनिया ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई था अपना ,कोई उपचार न चल पाया ,
एक नाम हुआ सारी दुनिया ,काबा-काशी एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन ये वाह-वाह , आहें हैं तब की पली हुई ,
वो प्यास जगी अन्तरमन में ,एक घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास दे कर जग को ,हम पानी-पानी कर बैठे....!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
क्या मिला और क्या छूट गया , ये गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में जल कर निखरे हैं ,कुछ और आग हम क्या जाने ,
सांसों का मोल नहीं होता ,कोई क्या हम को लौटाए ?
जो सीस काट कर हाथ धरे , वो साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग हमें "पागल" ,कहते हैं नादानी की है ,
हैं सफल "सयाना" जो जग में , ऐसी नादानी कर बैठे........!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!

शुक्रवार, 31 मई 2013

.....या रब्बा ऐसी ताकत देदे.....

ख्वाहिशे हो ऐसी जो आसमान को छूना चाहूँ
या रब्बा मुझे ऐसी ताकत देदे 
उडूं लेकर सपनो के पंख इन आसमानों में कही 
या रब्बा मुझे ऐसी ताकत देदे 
बस बहुत हुए दिन बचपन के खेल खिलोनो के 
अब दुनिया को अपनी पहचान दिखा दूं 
या रब्बा ऐसी ताकत देदे… 

सोमवार, 15 अप्रैल 2013

काश हमें भी किसी परी से प्यार हो जाये

काश हमें भी किसी परी से प्यार हो जाये,
चाहे फिर हमारी जिन्दगी ही क्यू ना बेकरार हो जाये....

उसकी यादों में हर पल मैं खोया करूंगा
खुद से भी ज्यादा प्यार मैं उसे किया करूंगा
आज अकेला ही हूँ में एक सितारा, कल चार- चाँद हो जाए
काश हमें भी किसी परी से प्यार हो जाए ...

मैं तनहा ना फिर रहा करूंगा
ना खुद सोऊंगा ना उसे सोने दिया करूंगा
यारा ख्वाबों में ही सही दीदार हो जाये
काश हमें भी किसी परी से प्यार हो जाये ...

दूसरों को देख कर आता है ये खयाल मुझे
क्या मेरा भी सपना कभी पूरा होगा
मुझे चाहने वाला भी क्या कभी दूजा होगा
एक बार जीत जाऊ फिर हार ही क्यों ना हो जाये
काश मुझे भी किसी पारी से प्यार हो जाए ...

हालात ऐसे है के न शौक पूरे होते है, न तवज्जोह किसी बात पर
दोस्तों की माशूक से भी आता है मज़ा हर मुलाक़ात पर
अब नहीं होता है सब्र. हम पर भी कोई बस जान- निशार हो जाये
काश मुझे भी किसी परी से प्यार हो जाये…

किसी ने

चाहत की महफ़िल में बुलाया है किसी ने ..
खुद बुला कर फिर सताया किसी ने .
जब तक जली है शमा जलता रहा परवाना
क्या इस तरह साथ निभाया है किसी ने .
अरमान मेरे चूर चूर हो गए है 
 यूं खिल के आँगन से गिराया है किसी ने।
आग लगी है अन्दर कोई क्या बुझाएगा
दिल इस तरह से आज जलाया है किसी ने .
दिल रोता है रात भर याद कर के किसी को
इस तरह उल्फत में जखम खाया है किसी ने .
संगदिल जो था आज वोह भी रो पाता
आज उस को भी तडपाया है किसी ने .



मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

.....ज़िन्दगी क्या है .....

.....ज़िन्दगी क्या है .....

इक सोच जो किसी को समझ ना आई
इक एहसास जो किसी ने नहीं पहचाना 
इक ज़ज्बा जो कोई जुटा ना पाया
इक सपना जो कभी पूरा ना हो पाया 
इक कहानी जो रही हमेशा अधूरी
इक पहेली जो कभी सुलझ न सकी .....
.....फिर भी लोग जिए जा रहे है ....
इस सोच को  सोचने में खोकर 
इस एहसास को जिए जा रहे है ...
भले न जुटा पाए कोई ज़ज्बा 
पर रोज यही सपना जिए जा रहे है ...
कहानी भले ही रहे अधूरी उनकी 
पर पहेली में यूही उलझते जा रहे है ...
....फिर भी लोग जिए जा रहे है .....