रविवार, 14 सितंबर 2014

बाँसुरी चली आओ..


तुम अगर नहीं आयीं…गीत गा ना पाऊँगा.
साँस साथ छोडेगी सुर सजा ना पाऊँगा..
तान भावना की है..शब्द शब्द दर्पण है..
बाँसुरी चली आओ..होट का निमन्त्रण है..
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है..
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है..
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है..
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है
औषधी चली आओ..चोट का निमन्त्रण है..
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है
तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से
भूख की दलीलों से वक़्त की सजाओं ने..
रात की उदासी को आँसुओं ने झेला है
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है...

राज़ सारे जीवन के मैं, बस तुम्हें बताता था.

शब्दों में न कह पाऊँ वो, सुरों में सजाता था..

बिन तुम्हारे राग सारे, रागिनी को भूले हैं..

अब ना वो बहारें हैं ना, सावन के झूले हैं..

आँधी में फ़सी शम्मा को, ओट का निमंत्रण है..

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है