शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

अष्टम नवरात्र (माता महागौरी)

माँ दुर्गा जी की आठवी शक्ति का नाम महागौरी है. इनका वर्ण पूर्णतः गौर है. इस गौरता की उपमा शाखाद, चन्द्र और कुंद के फूल से दी गयी है. इनकी आयु आठ वर्ष मानी गयी है. 'अष्टवर्षा भवेद गौरी'. इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी स्वेत है. इनकी चार भुजाएं है. इनका वाहन वृषभ है. इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय-मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू तथा नीचे के बाये हाथ में वर मुद्रा है. इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है. अपने पारवती रूप में इन्होने भगवन शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी. इनकी प्रतिज्ञा थी की 'वृयेहम वरदाम शम्भुम देवं महेश्वारत' (नारद-पश्चारात्र) गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार भी इन्होने भगवान शिव के वरन के लिए कठोर संकल्प लिया था.
जन्म कोटि लगि रगर हमारी.
वरऊं संभु न ता रहऊं कुआरी..
इस कठोर तपस्या के सरन इनका शारीर एकदम कला पड़ गया. इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुस्ट होकर जब भगवान शंकर ने इनके शारीर को गंगा जी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत् प्रभा के सामान अत्यंत कान्तिमान गौर हो उठा. तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा. दुर्गा पूजा के आठवे दिन महागौरी की उपासना का विधान है. इनकी शक्ति अमोघ और सद्य फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलमघ धुल जाते है. उसके पूर्व संचित पाप भी विनष्ट हो जाते है. भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते. वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यो का अधिकारी हो जाता है.  माँ महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजा-आराधना भक्तो के लिए सर्वविधि कल्याणकारी है. हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए. इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पदारविन्दों का ध्यान करना चाहिए. ये भक्तो का कष्ट अवश्य ही दूर करती है. इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते है. अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविधि प्रयत्न करने चाहिए. पुराणों में इनकी महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है. ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती है. हमें प्राप्ति भाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए.

...जय माता की...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें