
जन्म कोटि लगि रगर हमारी.
वरऊं संभु न ता रहऊं कुआरी..
इस कठोर तपस्या के सरन इनका शारीर एकदम कला पड़ गया. इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुस्ट होकर जब भगवान शंकर ने इनके शारीर को गंगा जी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत् प्रभा के सामान अत्यंत कान्तिमान गौर हो उठा. तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा. दुर्गा पूजा के आठवे दिन महागौरी की उपासना का विधान है. इनकी शक्ति अमोघ और सद्य फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलमघ धुल जाते है. उसके पूर्व संचित पाप भी विनष्ट हो जाते है. भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं आते. वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यो का अधिकारी हो जाता है. माँ महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजा-आराधना भक्तो के लिए सर्वविधि कल्याणकारी है. हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए. इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पदारविन्दों का ध्यान करना चाहिए. ये भक्तो का कष्ट अवश्य ही दूर करती है. इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते है. अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविधि प्रयत्न करने चाहिए. पुराणों में इनकी महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है. ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती है. हमें प्राप्ति भाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए.
...जय माता की...
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