आज मुझसे मेरी तन्हाई कहने लगी
की ये कैसा एहसास है
छलक पड़े आँखों से आसू
जब की हर ख़ुशी मेरे पास है
कभी-कभी मन बेचैन हो जाता है
जैसे अन्दर से कुछ निकल गया हो
कितना भी रोकू इस दर्द को
पर लगता है आसू पिघल गया हो
कितना दर्द है मेरी आवाज़ में
ये नहीं कोई जनता
हर बात चाहे सची हो
पर नहीं कोई मानता
आज फिर से उस दर्द ने मुझे पुकारा है
पर वो दर्द ही तो है जो पहले से हमारा है
ये वहम है या कुछ और
हमने हमेशा इस दर्द को ही पहचाना है
क्यूंकि कोई नहीं है जो क़द्र करे मेरी
सिर्फ इस दर्द ने ही तो मुझे जाना है .....
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