रविवार, 27 मार्च 2011

हसीन मौत


ज़िन्दगी में 2  मिनट कोई मेरे पास न बैठा,

आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे.

कोई तोहफा न मिला आज तक मुझे,

और आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे.

तरस गए हम किसी के हाथ से दिए वो 1  छोटे से रुमाल को,

और आज नए नए कपडे ओढ़ाये जा रहे थे.

2  कदम न साथ चलने को तैयार था कोई,

और आज काफिला बनकर जा रहे थे.

आज पता चला "मौत" कितनी हसीन होती है,
कमबख्त "हम" तो यूही जिए जा रहे थे. 

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