गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

हर बार तुम्हारा चेहरा, हर बार तुम्हारी आंखे


हर बार तुम्हारा चेहरा, हर बार तुम्हारी आंखे,
हम खुद में कितना उतरे, हम खुद में कितना झांके,
हर बार तुम्हारा चेहरा, हर बार तुम्हारी आंखे..
हर बार यही लगता है, अब कुछ भी याद नहीं है,
हर बार गुमा होता है, कोई फैयाद नहीं है,
हर बार उम्मीदों वाली, सुबह आकार कहती है,
तुमसे बाहर आने में, अब कोई विवाद नहीं है,
पर कभी फूट पड़ती है, आँखों के सूखे जल में,
हर बार तुम्हारी कोमल, हर बार तुम्हारी शाखे,
हर बार तुम्हारा चेहरा, हर बार तुम्हारी आंखे.
हर बार हमी ने गाया दुनिया का दर्द कुवारा,
हर बार पिया है हस कर आसू का सागर सारा,
थक कर सोये है जब जब नींदों की हदबंदी में,
हर बार छलक जाता है आँखों से ख्वाब तुम्हारा,
मन पाखी ने जब चाहा इच्छा का अम्बर छूना,
हर बार उड़ाने उमड़ी हर बार कटी है पाखे,
हर बार तुम्हारा चेहरा हर बार तुम्हारी आंखे........
- डा ०  कुमार  विश्वास   

16 टिप्‍पणियां:

  1. धन्य है कुमार विश्वास

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  2. साहब हिंदुस्तान मे पहले भी कई कवि हुए है
    उन कवियों का जमाना था पर आपका युग है
    धन्य हो विश्वास साहब 🙏🙏🙏🙏

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  3. Sur aapki vani logo k liyea kavita honge pr mere liyea jivan ka bhajan ho gya h ,ush ki yad aapki awaj aur mera dil bas yahi h sir aap mhan h

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