मंगलवार, 16 जुलाई 2013

एक चेहरा था ,दो आखेँ थीं

एक चेहरा था ,दो आखेँ थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
हम तो अल्हड-अलबेले थे ,खुद जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा तो नहीं रमा ,जग में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन प्यास बंधी तट पर ,पनघट इस घट में अटक गया ,
एक इंगित ने ऐसा मोड़ा,जीवन का रथ पथ भटक गया ,
जिस "पागलपन" को करने में ,ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
... वो पागलपन जी कर खुद को ,हम ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे...!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
परिचित-गुरुजन-परिजन रोये,दुनिया ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई था अपना ,कोई उपचार न चल पाया ,
एक नाम हुआ सारी दुनिया ,काबा-काशी एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन ये वाह-वाह , आहें हैं तब की पली हुई ,
वो प्यास जगी अन्तरमन में ,एक घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास दे कर जग को ,हम पानी-पानी कर बैठे....!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!
क्या मिला और क्या छूट गया , ये गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में जल कर निखरे हैं ,कुछ और आग हम क्या जाने ,
सांसों का मोल नहीं होता ,कोई क्या हम को लौटाए ?
जो सीस काट कर हाथ धरे , वो साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग हमें "पागल" ,कहते हैं नादानी की है ,
हैं सफल "सयाना" जो जग में , ऐसी नादानी कर बैठे........!
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर बैठे ,
इक किस्सा जी कर खुद को ही, हम एक कहानी कर बैठे...!

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