बुधवार, 2 फ़रवरी 2011


आज मुझसे मेरी तन्हाई कहने लगी  
की ये कैसा एहसास है  
छलक पड़े आँखों से आसू  
जब की हर ख़ुशी मेरे पास है  

कभी-कभी मन बेचैन हो जाता है  
जैसे अन्दर से कुछ निकल गया हो  
कितना भी रोकू इस दर्द को  
पर लगता है आसू पिघल गया हो  

कितना दर्द है मेरी आवाज़ में  
ये नहीं कोई जनता 
हर बात चाहे सची हो 
पर नहीं कोई मानता 

आज फिर से उस दर्द ने मुझे पुकारा है  
पर वो दर्द ही तो है जो पहले से हमारा है   
ये वहम है या कुछ  और  
हमने हमेशा इस दर्द को ही पहचाना है
क्यूंकि कोई नहीं है जो क़द्र करे मेरी
सिर्फ इस दर्द ने ही तो मुझे जाना है .....

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