बुधवार, 23 मई 2012

पगली लड़की



अमावास की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आंसूं के संग होते हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से साड़ी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है.

जब पोथे खली होते हैं, जब हर सवाली होते हैं,
जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं, अफसाने गाली होते हैं.
जब बासी फीकी धुप समेटें दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट  जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ  गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने  पर भी पारो पढने आ जाती है,
जब अपना मनचाहा हर काम कोई लाचारी लगता है,

तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है....


जब कमरे मे सन्नाटे की आवाज सुनाई देती है,
जब दर्पण मे आँखो के नीचे झॉई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती है, कुछ सेहत का भी ध्यान करो
क्या लिखते हो दिनभर, कुछ सपनो का सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते है,
जब बाबा हमें बुलाते है, हम जाते है, घबराते है,
जब साडी पहने लडकी का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमे मनाती है, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है....


दीदी कहती है उस पगली लडकी की कुछ औकात नही,
उसके दिल मे भैया तेरे जैसे प्यारे जज्बात नही,
वो पगली लडकी नौ दिन मेरे खातिर भूखी रहती है,
छुप–छुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मै प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन हूँ मजबूर बहुत, अम्मा–बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लडकी पर अपना कुछ अधिकार नही बाबा,
ये कथा–कहानी किस्से है, कुछ भी तो सार नही बाब,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है.

~ Dr. Kumar Vishwas ~

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