सोमवार, 20 सितंबर 2010

मेरा बचपन

अपनी छोटी सी दुनिया में झूल गया हूँ मैं,
बचपन की एक बात बतानी भूल गया हूँ मैं,
कितनी सुन्दर थी वो परियां और सपनों की दुनिया भी,
जिसमे रहकर दुनिया सारी भूल गया हूँ मैं,
न अपनी न औरों की कोई फिकर ही रहती थी
बस अपनी ही मस्ती में दुनिया मगन वो रहती थी
अब तो केवल यादों को ही सोच गया हूँ मैं,
उस चंचल मस्त सफ़र को न भूल गया हूँ मैं
उस सोंधी सी गीली मिट्टी की मिठास क्या कहती थी.
जिसके आगे चीकू का फल भूल गया हूँ मैं,
चंदा की लोरी सुनकर आँखों में नींद का आना भी,
और शायद वो चाँद सितारे भूल गया हूँ मैं,
बरसातों की झिलमिल में वो नाव बनाना कागज़ की,
शायद अब वो नाव बनाना भूल गया हूँ मैं
वो माँ का गुस्सा और प्यार झलकना आँखों से
दुनिया की गुमशुदगी में कहीं गुम गया हूँ मैं
बचपन की एक बात बताना भूल गया हूँ मैं
बचपन की एक बात बताना भूल गया हूँ मैं.............

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