मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

पंचम नवरात्र (माता स्कंदमाता)

माँ दुर्गा के पांचवे स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते है. ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. इनका वाहन मयूर है. अतः इन्हें मयूर्वन के नाम से भी अभिहित किया गया है. इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवे स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवे दिन कि जाती है. इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है. इनके विग्रह में भगवन स्कन्द जी बाल रूप में इनकी गोद में बैठे होते है.
स्कान्दामात्रिस्वरूपिनी देवी कि चार भुजाएं है. ऊपर वाली भुजाओं में कमल पुष्प है. बायीं तरफ कि नीचे वाली भुजा वरमुद्रा में है. इनका वर्ण पूर्णतः शुभ है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती है.  इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. सिंह भी इनका वाहन है. नवरात्र-पूजन के पांचवे दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्त्व बताया गया है. इस चक्र में अवस्थित मनवाले साधक कि समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है. वह विशुद्ध बन्धनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमा के स्वरुप में पूर्णतः तल्लीन होता है. इस समय ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ाना चाहिए. माँ स्कंदमाता की  उपासना से  भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती है. इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वयमेव सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कन्द भगवान् कि उपसना भी स्वयमेव ही हो जाती है यह विशेषता केवल इन्ही को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता कि उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज़ एवं कान्ति से संपन्न हो जाता है. एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक परिव्यत रहता है. यह प्रभामंडल प्रितिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है.
अतः हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए. इस घोर भवसागर से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है.

...जय माता की...

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