गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

सप्तम नवरात्र (माता कालरात्रि)

माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जनि जाती है. इनके शरीर का रंग घनिं अन्धकार की तरह एकदम कला है. सिर के बाल बिखरे हुए है. गले में विद्युत् की तरह चमकाने वाली माला है. इनके तीन नेत्र है. ये तीनो नेत्र ब्रह्माण्ड के सदृश गोल है. इनमे से विद्युत् के सामान चमकीली किरणे निःसृत होती रहती है. इनकी नासिका के शवक प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती है. इनका वाहन गंदर्भ-(गधा) है. ऊपर उठे हुए दाहिनी हाथ की वर मुद्रा से सब ही को वर प्रदान करती है. दाहिनी तरफ नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग(कटार) है.
माँ कालरात्रि का स्वरुप देखने में अत्यंत भयानक है. लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है.इसी कारण इनका नाम 'शुभकारी' भी है. अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भयभीत अथवा आतंकित होने किओ आवश्यकता नहीं है. दुर्गा पूजा के सातवे दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है. इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता हिया. उसके लिए ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है. इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरुप में अवस्थित रहता है. उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है. उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है. उसे अक्षां पुण्य की प्राप्ति होती है. माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली है. दानव, दैत्य राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते है. ये गृह-बाधाओं को भी दूर करने वाली है. इनके उपासक को अग्नि-भय, जल-भय, जन्तु-भय, शत्रु-भय, रात्री-भय आदि कभी नहीं होते. इनकी कृपा से वह सर्वथा भय मुक्त हो जाता है. माँ कालरात्रि के स्वरुप विग्रह को अपने ह्रदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए.
यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए. मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए. यह शुभकारी देवी है. उनकी उपासना से होने वाले शुभाको की गणना नहीं की जा सकती है. हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजन करना चाहिए.

...जय माता की...

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