शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

नवम नवरात्र (माता सिद्धिदात्री)

माँ दुर्गा की नवी शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है. मर्कंदेयापुरण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ होती है. ब्रह्म्वैवार्त्पुरण के श्रीकृष्ण-जमन खंड में यह संख्या अट्ठारह बताई गयी है. इनके नाम इस प्रकार है...
1 . अणिमा, 2 . लघिमा, 3 . प्राप्ति, 4 . प्रकाम्य, 5 . महिमा, 6 . ईशित्व, वशित्व, 7 . सर्वकामावसायिता, 8 . सर्वज्ञत्व, 9 . दूर्स्रावन, 10 . परकाय्प्रवेशन, 11 . वाक्सिद्धि, 12 . कल्पवृक्षत्व, 13 . सृष्टि, 14 . संहारकरणसामर्थ्य , 15 . अमरत्व, 16 . सर्वन्यायकत्व, 17 . भावना, 18 . सिद्धि.
माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है. देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था. इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण वह लोक में 'अर्धनारीश्वर' के नाम से प्रसिद्ध हुए. माँ सिद्धिदात्री चार भुजा वाली है. इनका वाहन सिंह है. ये कमल के पुष्प पर भी आसीन होती है. इनकी दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है. नवरात्र पूजन के नवे दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठां के साथ साधना करने से साधक में ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय की सामर्थ्य आ जाती है.
प्रत्येक मनुष्य का यह कर्त्तव्य है की वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे. उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो. इनकी कृपा से अनंत दुःख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सरे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है. नव दुर्गों में सिद्धिदात्री अंतिम हैं. अन्य आठ दुर्गों की पूजा-उपासना शास्त्रीय विधि-विधान आवश्यकतानुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नवे दिन इनके उपासना में प्रवृत्त होते है.



इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तो और साधको की लौकिक-परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओ की पूर्ती हो जाती है. सिद्धिदात्री माँ के कृपा पत्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचाती ही नहीं है जिसे वह पूर्ण करना चाहे. वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवाश्यकताओं और स्प्रिहओं से ऊपर उठाकर मानसिक रूप में माँ भगवती के दिव्या लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पियूष का निरंतर पान करता है. इस परम पड़ को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वास्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती है.
माँ के चरणों का यह सानिध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करनी चाहिए. माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध करते हुए वास्तविक परम्शाक्तिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है.

...जय माता की...

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